'अहा! जिंदगी' पत्रिका में मेरा कालम आता है जिसके पिछले अंक में मैंने बांधवगढ़ के बारे में लिखा है। उसी का एक अंश :
"अभी पिछले दिनों समाचार पत्र में एजेंसी के हवाले से खबर थी कि चीन के दो लोग वहां के आखिरी बाघ को भी खा पीकर साफ़ करने में कामयाब हो गए। हमारे निरामिष देश में शेर के खाए जाने की न तो संभावना है और न ही ज़रुरत , क्योंकि शेर को खत्म करने के कई अधिक प्रभावी और कारगर तरीके हमारे राजा महाराजाओं की जमात से लेकर हमारा व्यापारी , दलाल और उदासीन सामान्य जन एक लम्बे अर्से से जानता है । कहा जाता है की सौ वर्ष पहले हमारे देश में बाघों की गिनती लाखों में होती थी। अब एक अत्यंत धोखादेह गणना के अनुसार कोई दो हज़ार या उस से भी कम बाकी बचे हैं। सरिस्का में गणना के अनुसार कई बाघ थे। फिर अचानक बताया गया कि एक भी नहीं है। दिक्कत यह है कि आजकल हर चीज़ में हमारा मुकाबला चीन से होने लगा है, इसलिए ताज्जुब नहीं अगर किसी दिन अख़बार के तीसरे पन्ने पर खबर मिले की चीन ही नहीं भारत भी अब अपनी धरती से बाघ का अमूल सफाया करने में कामयाब हो गया है!
शेर की खाल , उसके नाख़ून और उसके शारीर के अन्य हिस्सों की तस्करी करने वाले बड़े खिलाडियों को छोड़ दें तो देश के लगभग हर राष्ट्रीय उद्यान में आपको किसी भी कीमत पर शेर देखने के लिए आने वाले तमाशबीनों का हुजूम मिल जायेगा। हर उद्यान की यू एस पी उसके बाघों की संख्या से तय होती है। छोटा से छोटा उद्यान भी आजकल अपने आपको 'टाइगर रिज़र्व' से कम कहलवाया जाना पसंद नहीं करता, फिर चाहे वहां शेर क्या गीदड़ ढूंढ निकलना भी मुश्किल हो। बाघ का नाम आज भी स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महकमों में सबसे अधिक बिकाऊ है, इसी को देखने और बचाने के नाम पर सबसे अधिक पैसा और साधन जुटाए जाते हैं, जब कि हिम तेंदुआ चिरु और कई दूसरी प्रजातियाँ कहीं अधिक गंभीर संकट में हैं। दुखद यह भी है कि भीड़ के चलते आज रणथम्भोर और गीर जैसे लोकप्रिय उद्यानों की टिकट खिडकियों के आगे भी दलालों एजेंटों वाहन चालकों और जुगत भिड़ाने वाले अधिकारियों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है।"
पिछले दिनों एयर सेल की ओरे से टी वी पर बाघों को बचने का अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन यह अभियान क्या करेगा यह साफ़ नहीं है। सिर्फ इरादों से बाघ को बचाया जा सकेगा इसमें भरी संदेह है.
प्रिय भाई,
जवाब देंहटाएंब्लॉगर के रूप में आपका स्वागत है।
आपकी कहानियों,लेखों,सर्जनात्मक अनुवादों और अन्य लेखन का मैं उत्सुक पाठक हूं।
शुभकामनाओं सहित,
कुमार अंबुज
Jitendra
जवाब देंहटाएंThis is a very informative column. I learned a lot. I appreciate your passion. A few years ago I spent a lot of money on a tour company for an early morning visit to Ranathambhore to see the tigers. Never saw any. Your concern is real. Good Luck in your efforts. Warm regards.
Dan Mayur
उपयोगी जानकारी, सुंदर प्रस्तुति और मोहक चित्र. देखकर सचमुच आनंद आ गया. प्रकृति का साहचर्य बना रहे और सदैव बना रहे यही पार्थना है ईश्वर से. इतने सुंदर ब्लॉग के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.
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