सुदूर हिमालय में पर्यावरण
शायद पर्यावरण के क्षेत्र में हिमाचल देश के दूसरे प्रान्तों से कहीं आगे है. यहाँ प्लास्टिक के प्रयोग पर लगभग पूरा प्रतिबन्ध है. अभी अभी हिमाचल में स्थित ग्रेट हिमालयन पार्क से लौटा हूँ. इसके लिए दिल्ली से मनाली जाने वाली मुख्य सड़क पर कुल्लू की सुरंग से पहले औट में उतरना होता है. फिर वहां से तीर्थन नदी के किनारे किनारे सड़क के रास्ते आगे साईरोपा तक. नदी बहुत रफ़्तार से नीचे उतरती है. यह जंगल का अछूता किनारा है. यदि आप पहाड़ में शहरों वाली भगदड़ देखना चाहते हैं तो यहाँ न आयें. लेकिन प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं होगी. बुरांश या रोडेडरौन यहाँ का राष्ट्रीय फूल है. अप्रैल के महीने में यहाँ बुरांश से लदी सुर्ख डालियाँ हर जगह दिखाई देंगी. साईरोपा में हमारा ठहरना वहां के पर्यावरण केंद्र में हुआ जिसकी देखभाल का जिम्मा वन अधिकारी अंकित सूद पर है जो हम जैसे सैलानियों की देखभाल करने के साथ साथ पर्यावरण का महत्वपूर्ण काम भी कर रहे हैं. साईरोपा से आसमान साफ़ होने पर हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है. हिमालयन पार्क के लिए कुछ आगे जाकर बस छोड़ देनी पड़ती है और पैदल कोई दस किलोमीटर का पैदल सफ़र है. इस यात्रा पर हमारे साथ थे अंकित के भाई पंकी सूद जिनका अपना एक दिलचस्प इतिहास है. कई सालों तक चरस के शिकार होने के बाद पंकी ने एक दिन नशा त्याग दिया और अब वह अपने भाई के साथ पर्यावरण के काम में जुटे हैं. वे स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण भी देते हैं.
देखा जाये तो इस प्रदेश में पर्यावरण का काम बेहद मुश्किल है और इसके लिए सुविधाओं की भी कमी है. हिमालयन नेशनल पार्क में कई तरह के जानवर और पक्षी पाए जाते हैं लेकिन यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण तो यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य ही है. तीर्थान नदी पर पार्क के भीतर हिप्पो चट्टान है जो देखने में हिप्पो की शक्ल की है. आगे आप जंगल के भीतर दूर तक पैदल जा सकते हैं लेकिन इसके लिए आपके पास कैम्पिंग का पूरा सामन होना चाहिए. तीर्थन नदी इस क्षेत्र की एकमात्र नदी है जिसपर अब भी कहीं कोई बाँध नहीं बनाया गया है और पर्यावरण की दृष्टि से यह इलाका इसी वजह से कुछ सुरक्षित समझा जाता है. लेकिन जिस देश में पर्यावरण को नष्ट कर व्यवसाय बनाने के लिए उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों की मिलीभगत लगातार काम कर रही हो वहां सवाल यही उठता है कि बकरे की माँ कबतक खैर मनाएगी? फ़िलहाल तो हमारी सारी उम्मीद पंकी और अंकित जैसे इकलौते व्यक्तियों के प्रयासों पर ही टिकी है जो बेहद मुश्किल हालत में भी इतना महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस क्षेत्र में जिम्मेदार पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए सुविधाओं का विकास किया जायेगा.
शायद पर्यावरण के क्षेत्र में हिमाचल देश के दूसरे प्रान्तों से कहीं आगे है. यहाँ प्लास्टिक के प्रयोग पर लगभग पूरा प्रतिबन्ध है. अभी अभी हिमाचल में स्थित ग्रेट हिमालयन पार्क से लौटा हूँ. इसके लिए दिल्ली से मनाली जाने वाली मुख्य सड़क पर कुल्लू की सुरंग से पहले औट में उतरना होता है. फिर वहां से तीर्थन नदी के किनारे किनारे सड़क के रास्ते आगे साईरोपा तक. नदी बहुत रफ़्तार से नीचे उतरती है. यह जंगल का अछूता किनारा है. यदि आप पहाड़ में शहरों वाली भगदड़ देखना चाहते हैं तो यहाँ न आयें. लेकिन प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं होगी. बुरांश या रोडेडरौन यहाँ का राष्ट्रीय फूल है. अप्रैल के महीने में यहाँ बुरांश से लदी सुर्ख डालियाँ हर जगह दिखाई देंगी. साईरोपा में हमारा ठहरना वहां के पर्यावरण केंद्र में हुआ जिसकी देखभाल का जिम्मा वन अधिकारी अंकित सूद पर है जो हम जैसे सैलानियों की देखभाल करने के साथ साथ पर्यावरण का महत्वपूर्ण काम भी कर रहे हैं. साईरोपा से आसमान साफ़ होने पर हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है. हिमालयन पार्क के लिए कुछ आगे जाकर बस छोड़ देनी पड़ती है और पैदल कोई दस किलोमीटर का पैदल सफ़र है. इस यात्रा पर हमारे साथ थे अंकित के भाई पंकी सूद जिनका अपना एक दिलचस्प इतिहास है. कई सालों तक चरस के शिकार होने के बाद पंकी ने एक दिन नशा त्याग दिया और अब वह अपने भाई के साथ पर्यावरण के काम में जुटे हैं. वे स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण भी देते हैं.
देखा जाये तो इस प्रदेश में पर्यावरण का काम बेहद मुश्किल है और इसके लिए सुविधाओं की भी कमी है. हिमालयन नेशनल पार्क में कई तरह के जानवर और पक्षी पाए जाते हैं लेकिन यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण तो यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य ही है. तीर्थान नदी पर पार्क के भीतर हिप्पो चट्टान है जो देखने में हिप्पो की शक्ल की है. आगे आप जंगल के भीतर दूर तक पैदल जा सकते हैं लेकिन इसके लिए आपके पास कैम्पिंग का पूरा सामन होना चाहिए. तीर्थन नदी इस क्षेत्र की एकमात्र नदी है जिसपर अब भी कहीं कोई बाँध नहीं बनाया गया है और पर्यावरण की दृष्टि से यह इलाका इसी वजह से कुछ सुरक्षित समझा जाता है. लेकिन जिस देश में पर्यावरण को नष्ट कर व्यवसाय बनाने के लिए उद्योगपतियों और राजनीतिज्ञों की मिलीभगत लगातार काम कर रही हो वहां सवाल यही उठता है कि बकरे की माँ कबतक खैर मनाएगी? फ़िलहाल तो हमारी सारी उम्मीद पंकी और अंकित जैसे इकलौते व्यक्तियों के प्रयासों पर ही टिकी है जो बेहद मुश्किल हालत में भी इतना महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस क्षेत्र में जिम्मेदार पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए सुविधाओं का विकास किया जायेगा.
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